नई दिल्ली। भाजपा ने दिल्ली का चुनाव परिणाम आने के 10 दिनों के बाद जिस तरह एक महिला मुख्यमंत्री के रूप में रेखा गुप्ता को कमान देने का निर्णय लिया, उसने यह संकेत दे दिया है कि पार्टी इस ऐतिहासिक जीत को अभी से ठोस आधार देने में जुट गई है। जोश को ठंडा होने का पूरा वक्त दिया गया और फिर जाट, पंजाबी, वैश्य, पूर्वांचली के जाल को काटते हुए महिला को आगे कर पूरे देश को संदेश दिया गया।
एक तरीके से पार्टी के अंदर भी नेताओं की प्रतिस्पर्धा को खत्म कर दिया गया। पिछले कुछ दिनों से जितनी चर्चा संभावित मुख्यमंत्री को लेकर हो रही थी, उतनी ही बहस इस बात पर भी थी कि आखिर इतनी देर क्यों? क्या पेच है? हालांकि, दिल्ली के प्रभारी बैजयंत जय पांडा चुनाव परिणाम आने के साथ ही कह चुके थे कि 10 दिनों में नया मुख्यमंत्री मिलेगा।
13 फरवरी की रात तक विदेश में थे पीएम मोदी
सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 फरवरी की रात तक विदेश में थे। लेकिन उसके बाद पांच दिनों की देर क्यों, यह सवाल था। आठ फरवरी को फैसला आया था और 10 दिन बाद 19 फरवरी को मुख्यमंत्री का फैसला हो गया। वस्तुतः 27 साल बाद दिल्ली में जो जीत मिली, उसके बाद पार्टी के कई नेताओं में एक अभिमान भी था। जीत का सेहरा बांधने और दावेदारी की होड़ भी शुरू हो गई थी।
भाजपा नेतृत्व ने धीरे-धीरे नेताओं की इस खींचतान को शांत कर दिया। वैसे भी सच्चाई तो यही है कि दिल्ली की जीत अगर किसी एक चेहरे पर हुई थी, तो वह नरेंद्र मोदी थे। भाजपा के लिए बड़ा सवाल यह था कि जाति के पेच से कैसे निकलें? दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में भाजपा हर जाति वर्ग से अध्यक्ष बनाकर इसका प्रयोग करती रही है।
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एक महिला के हाथ में राज्य की कमान दी
वहीं, अब जब सत्ता में आई है तो पार्टी इस बहस को ही समाप्त करना चाहती है। रेखा गुप्ता एक जाति से हैं, लेकिन उससे पहले महिला हैं। दिल्ली समेत कई राज्यों में भाजपा की जीत में महिलाओं की भूमिका अहम रही है। आज के दिन अकेले भाजपा यह दावा करेगी कि उसने एक महिला के हाथ में राज्य की कमान दी है, जबकि पड़ोसी राज्य राजस्थान में उपमुख्यमंत्री महिला है।
यह भी एक संयोग है कि रेखा गुप्ता हरियाणा के जींद से आती हैं
बंगाल में जरूर ममता के हाथ कमान है, लेकिन वह खुद ही पार्टी की सुप्रीम लीडर हैं। आम आदमी पार्टी के समय में भी एक महिला मुख्यमंत्री बनाई तो गई थी, लेकिन उसे अस्थायी भी करार दे दिया गया था। यह सच है कि मंत्रिमंडल में जातिगत और क्षेत्रीय फॉर्मूला साधा जाएगा। चेहरा न्यूट्रल लेकिन प्रभावी रखने की कोशिश हुई है। यह भी एक संयोग है कि रेखा गुप्ता हरियाणा के जींद से आती हैं।
राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भाजपा ने मुख्यमंत्री चुनाव में चौंकाया था। यह संदेश भी दिया था कि पार्टी में बड़ा चेहरा होना सब कुछ नहीं है। कर्मठ कार्यकर्ता होना बहुत कुछ है, जो बिना अभिमान पार्टी नेतृत्व की सोच को जमीन तक पहुंचा पाए, पहले दिन से। रेखा गुप्ता को यह साबित करना पड़ेगा।